नई दिल्ली 09 नवम्बर2019- अयोध्या मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में 70 साल पुरानी लड़ाई का फैसला होने जा रहा है। अयोध्या में चल रहे राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाने जा रही है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, एस ए बोबडे डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण, और एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ सुबह साढ़े दस बजे अपना फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक धार्मिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील इस मामले की चालीस दिन तक लगातार सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वही देश में संप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने सभी प्रदेशों में कानून व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश जारी कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
छतीसगढ़ में बढाई गई सुरक्षा, स्कूलों कॉलेजो में अवकाश,
छत्तीसगढ़ में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के फैसले को लेकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है वहीं पुलिस प्रशासन ने शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्यपाल अनुसूया उईके, विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत ने लोगों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है। प्रदेश में स्कूल और कॉलेजों में जिला कलेक्टर ने मुख्य सचिव के निर्देश पर अवकाश घोषित कर दिया है। वही सामाजिक संप्रदाय और सद्भावना बनाए रखने के लिए सभी कार्यपालक अधिकारियों को अपने कार्य क्षेत्रों में शांति व्यवस्था पर नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।
रामलला विराजमान और मुस्लिम समुदाय के बीच क्या था विवाद ?
साल 1992 में बाबरी मस्जिद हटाए जाने के बाद मामले ने जोर पकड़ लिया जब कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था। मुस्लिम पक्ष द्वारा कहा जाता है, कि बाबर के आदेश पर 1528 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर विवादित ढांचे का निर्माण हुआ था। यह ढांचा हमेशा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद का मुद्दा रहा हिंदू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं, और वहां अधिकार का दावा करते हैं। जबकि मुसलमान भी उस विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक मांग रहे हैं। 6 दिसंबर 1996 को विवादित ढांचा कार सेवकों द्वारा ढहा दिया गया था। हालांकि तब भी है मुकदमा अदालत में लंबित था। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा साल 2010 में चार याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया गया था. जिसमें अयोध्या के 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश जारी किया गया था. इसमें से एक हिस्सा रामलला विराजमान दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा मुसलमानों को देने का आदेश था. हाईकोर्ट ने रामलला विराजमान को वही हिस्सा देने का आदेश दिया था. जहां वह अभी विराजमान है।
इस आदेश के खिलाफ भगवान रामलला विराजमान सहित सभी पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दाखिल की गई थी. इसी पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई की थी। वही शिया वक्फ बोर्ड ने पूरी जमीन हिंदुओं को देने का ऐलान भी किया था। उनका मानना था कि सन 1528 में बाबर के आदेश पर उनके कमांडर मीर बाकी ने उक्त ढांचे का निर्माण कराया था। मीर बाकी सिया था, और वही पहला मुतवल्ली था। ऐसे में वो ढांचा शिया वक्फ का था।